bhakti ganga
मार्ग कैसा भी बीहड़ आये
‘छोड़ेगा न मुझे तू’ मन से यह विश्वास न जाये
जब निज गति पर भी हो संशय
फिर-फिर हो खो जाने का भय
देखूँ तब तुझको, करुणामय !
दोनों हाथ उठाये
ज्यों शिशु दूर कहीं भी खेले
माँ सुन रुदन गोद में ले ले
वैसे ही तू मुझे अकेले
जग में पल न भुलाये
जब इस पथ से नाता टूटे
जो तिल-तिल जोड़ा सब छूटे
तब भी मन की शांति न लूटे
काल न मुझे डराये
मार्ग कैसा भी बीहड़ आये
‘छोड़ेगा न मुझे तू’ मन से यह विश्वास न जाये