bhakti ganga
मिलन की बेला बीत गयी
और अभी तू ढूँढ़ रही है कलियाँ नयी-नयी!
कब यह माला बन पायेगी!
कब तू प्रिय को पहनायेगी!
हार गूँथती रह जायेगी
अरी बावली! देख ढल रही रजनी सुधामयी
था श्रृंगार भले ही आधा
कहाँ समर्पण में थी बाधा!
क्यों इतना कठोर व्रत साधा!
किसको दिखलायेगी कल यह सुषमा जग-विजयी!
मिलन की बेला बीत गयी
और अभी तू ढूँढ़ रही है कलियाँ नयी-नयी!