bhakti ganga

मुझे तो एक भक्ति का बल है
यही धर्म का मूल, ज्ञान का अंतिम शरणस्थल है

पहुँचा कर मुझको अनंत में
छोड़ गये हैं सभी अंत में
बस तू ही बैठा दिगंत में

सुधि लेता प्रतिपल है

बल,वैभव, सम्मान अपरिमित
क्या, यदि मिलते हों जग में नित
हुए न प्राण प्रेम-रस-प्लावित

जीने का क्या फल है

यद्यपि तू अविदित, अनाम है
दुख में लेता हाथ थाम है
मुझे यही वैकुण्ठ धाम है

जंगल में मंगल है

मुझे तो एक भक्ति का बल है
यही धर्म का मूल, ज्ञान का अंतिम शरणस्थल है