bhakti ganga

मुझे तो लहर बना रहने दो
हे असीम! मुझको अपनी ही सीमा में बहने दो

संध्या, ऊषा के आलिंगन
मधुर पवन के झोंके क्षण क्षण
झड़, झंझा, पवि पाहन-वर्षण

सब निज पर सहने दो

यदि तुममें लय हो जाऊँगा
फिर यह तीर कहाँ पाऊँगा!
मैं तो यहीं कुटी छाऊँगा

ढहती हो, ढहने दो

जग का यह लीलाघर न्यारा
क्या, यदि मुझको लगता प्यारा!
जड़ माया का इसे पसारा

संतों को कहने दो

मुझे तो लहर बना रहने दो
हे असीम! मुझको अपनी ही सीमा में बहने दो