bhakti ganga
मैंने वंशी नहीं बजायी
जाने ह्रदय लुभानेवाली तान कहाँ से आयी
ओ मेरे वंशी के वादक!
तेरी ये ध्वनियाँ उन्मादक
ले आयी थीं मुझे जहाँ तक
उसके आगे तो मैंने तिल भर उँगली न हिलायी
चाहे दिया किसी का स्वर हो
वंशी जिससे अधरों पर हो
वह गँवार भी नटनागर हो
मैंने तो कुछ किये बिना ही यह कवि-पदवी पायी
मैंने वंशी नहीं बजायी
जाने ह्रदय लुभानेवाली तान कहाँ से आयी