bhakti ganga
यदि हम तुझमें ही जीते हैं
तो फिर क्यों मन-ही-मन यह चिंता का विष पीते हैं!
आदि रहे या अंत, हमें क्या!
पतझड़ और वसंत, हमें क्या!
हम यदि सिन्धु अनंत, हमें क्या!
भरे कि घट रीते हैं!
माना सुख के स्वप्न लुभाते
दुख आँखों में आँसू लाते
पर जो पल तुझसे जुड़ जाते
कब निष्फल बीते हैं!
यदि हम तुझमें ही जीते हैं
तो फिर क्यों मन-ही-मन यह चिंता का विष पीते हैं!