bhakti ganga

राजसिंहासन के बदले
उसको क्या कहिए जो तुनुक खिलौनों पर मचले!

बोली चकित भारती, ‘ यह क्या!
तेरे हित मैं लिए अमरता
भला-बुरा जीवन है जैसा

भुला उसे, पगले!’

पर जो सद्यः फल की धुन में
कैसे रम पाये निर्गुण में
मधुमय सपनों की रुनझुन में

जिसकी रात ढले!

नाता तो स्वर्गों से जोड़ा
मैंने जग का मोह न छोड़ा
फूलों को डाली से तोड़ा

खिलने के पहले

राजसिंहासन के बदले
उसको क्या कहिए जो तुनुक खिलौनों पर मचले!