bhakti ganga

वही है धरा, वही है अम्बर
वही चाँद सूरज, तारे हैं, केवल मैं न कहीं पर

माना चेतन शक्ति अमर है
जड़ भी जिसका रूपांतर है
पर मेरी अस्मिता किधर है

जो थी इसमें भास्वर?

रहे न कोई अब चिंता-भय
सारे मोह-शोक भी हों लय
किन्तु मुझे तो नाम रूपमय

जीवन ही था प्रियतर

यदि मेरी सत्ता न बची है
तूने क्यों यह सृष्टि रची है?
मुझसे भी पूछा कि जँची है

मुक्ति भुक्ति से बढ़ कर!

वही है धरा, वही है अम्बर
वही चाँद सूरज, तारे हैं, केवल मैं न कहीं पर