bhakti ganga

इसलिये मैं व्यक्त से अव्यक्त होना चाहता हूँ
क्योंकि मेरे व्यक्त की सीमा नयन है
क्योंकि मेरे व्यक्त की सीमा गगन है
क्योंकि मेरे व्यक्त की सीमा मरण है
इसलिये मैं अमृत से संपृक्त होना चाहता हूँ

क्योंकि मेरे व्यक्त की सीमा प्रकृति है
क्योंकि मेरे व्यक्त की सीमा नियति है
क्योंकि मेरे व्यक्त की सीमा अगति है
इसलिये मैं काल से अविभक्त होना चाहता हूँ

क्योंकि मेरा व्यक्त मुझको डंस रहा है
क्योंकि मेरा व्यक्त मुझको कस रहा है
क्योंकि मेरा व्यक्त मुझको गस रहा है
इसलिये मैं परिधि से परित्यक्त होना चाहता हूँ

इसलिये मैं व्यक्त से अव्यक्त होना चाहता हूँ