bhakti ganga
व्यर्थ क्यों घुट-घुट मरना है!
सम्मुख जो आये झुककर स्वीकार उसे करना है
जब अंतिम उसका ही मत हो
क्यों न समागत का स्वागत हो!
ऊँच-नीच जैसा भी पथ हो
सीधे पग धरना है
तूने ही काँटे थे बोये
अब यों सिर पकड़े क्यों रोये
बिना तनिक भी धीरज खोये
पिछला ऋण भरना है
भाग्यलेख माना न टलेगा
क्यों तू आप नहीं बदलेगा!
जिस पर तेरा वश न चलेगा
उससे क्या डरना है!
व्यर्थ क्यों घुट-घुट मरना है!
सम्मुख जो आये झुककर स्वीकार उसे करना है