bhakti ganga
सबने तो लिये लूट निज-निज भाग
एक निर्विकल्प मैं ही मौन रहा जाग
किसीको समृद्धि मिली, सुख मिला जी को
कंचन किसीको और कामिनी किसीको
घेर लिया नभ को किसीने धरती को
और मैं सभीको चला त्याग, बिना राग
कोई थे चतुर, नीतिवान कोई ज्ञानी थे
जाति, कुल, बड़प्पन के कोई अभिमानी थे
लूटकर मुहर कोई सूची के दानी थे
फूँक निज घर को मैं रचता था फाग
सबने उढ़ाये अलंकार प्राण-तन को
बाँट दिया मैंने तो निजत्व भी भुवन को
साबुन से धो-धोकर साफ़ किया मन को
पड़ने दिया न कहीं कोई भी दाग
सबने तो लिये लूट निज-निज भाग
एक निर्विकल्प मैं ही मौन रहा जाग