bhakti ganga
सहारा देते रहो निरंतर
प्रतिपल भाग रहे मन के अश्वों की रास पकड़ कर
अंग-अंग दुख रहे हमारे
अविरत काल-शरों के मारे
कौन शरण अब सिवा तुम्हारे हे करुणा के सागर !
माना तुम भी बँधे स्वयम् से
कारण-कार्य, कर्म-फल-क्रम से
पर इस चिर-निरपेक्ष नियम से कुछ तो होगा बाहर !
जब हम लघु मानव भी भू पर
करते क्षमा दया से भर कर
सर्व-समर्थ तुम्हीं जगदीश्वर ! रह सकते साक्षी भर !
सहारा देते रहो निरंतर
प्रतिपल भाग रहे मन के अश्वों की रास पकड़ कर