bhakti ganga

हम तो अपने में ही फूले
कितनी आगे और पड़ी है दुनिया, यह भी भूले

अपने सुख में सब सुख देखा
किया न जग के दुख का लेखा
धरे अहम् की लक्ष्मण-रेखा

निज डाली पर झूले

आप देवता, आप पुजारी
भेंट आप ही रख ली सारी
कैसे प्रभु! पगधूलि तुम्हारी

यह पानी मन छू ले!

हम तो अपने में ही फूले
कितनी आगे और पड़ी है दुनिया, यह भी भूले