bhakti ganga
और क्या तुझे चाहिए, बोल
मन रे! अब तेरे सम्मुख हैं सब भूगोल-खगोल
यदि इनसे संतोष न आता
तो मैं तुझमें तुझे बुलाता
देख, जहाँ चित् रास रचाता
अंतर के पट खोल
सूरज, चाँद और ये तारे
जिसके पद-सेवक हैं सारे
आप वही जब तुझे पुकारे
क्या है इनका मोल!
सब शंकायें दूर भगा दे
निज में श्रद्धा-ज्योति जगा दे
एक उसी में ध्यान लगा दे
इधर-उधर मत डोल
और क्या तुझे चाहिए, बोल
मन रे! अब तेरे सम्मुख हैं सब भूगोल-खगोल