bhakti ganga
कभी तो अगला ठाठ सजाओ
कहीं न डूबे सूरज पथ में, कुछ भी सँजो न पाओ
चुनते शब्दों के मुक्ताहल
माना तुम बढ़ते हो अविरल
पर वह कहाँ त्याग-तप का बल
जिस पर यों इतराओ!
साथी एक-एक कर छूटे
कुछ लुट गये और कुछ टूटे
कौन सुने ये गीत अनूठे
कितना भी अब गाओ!
जब स्वागत में हाथ बढ़ा कर
माँ तुमसे पूछेगी, घर पर
‘क्या लेकर आये?’ तब उत्तर
क्या दोगे, बतलाओ
कभी तो अगला ठाठ सजाओ
कहीं न डूबे सूरज पथ में, कुछ भी सँजो न पाओ