bhakti ganga
कैसे आऊँ शरण तुम्हारी!
देख मुझे लोगों के मन में उलझन होगी भारी
सोचेंगे सब, ‘पड़ा शरण में
यह दुख क्यों पाता क्षण-क्षण में?
कुछ तो त्रुटि है प्रभु के प्रण में
व्यर्थ न पूजा सारी’
कौन समझ पायेगा पर यह
प्रभु तो कर्मफलों से निस्पृह!
भोगे बिना न कटता संग्रह
पापों का भयकारी
क्यों मैं अपनी हँसी कराऊँ!
मान तुम्हारा भी घटवाऊँ!
क्यों न सदा ऐसे गुण गाऊँ
सुनें न धुन नर-नारी!
कैसे आऊँ शरण तुम्हारी!
देख मुझे लोगों के मन में उलझन होगी भारी