bhakti ganga
कैसे पहुँचूँ तुझ तक, स्वामी!
मैंने हर मालाधारी की उँगली भी हो थामी?
सबने इधर-उधर भटकाकर
छोड़ दिया है मुझे द्वार पर
कोई ले जाने की भीतर
नहीं भर रहा हामी
जब इतना दुर्बल मन मेरा
लाँघ न पाता अपना घेरा
कैसे द्वार लाँघकर तेरा
आये यह सुखकामी!
इसे न जग से मुक्ति चाहिए
छिपी भक्ति में भुक्ति चाहिए
बस इसकी ही युक्ति चाहिए
दिखे पुण्य-पथ-गामी
कैसे पहुँचूँ तुझ तक, स्वामी!
मैंने हर मालाधारी की उँगली भी हो थामी?