bhakti ganga

जीवन तो केवल प्रवाह है!

सलिल नहीं है यह न लहर है
झंझा नहीं, न बुद्बुद् भर है
इन सब से जो हुई मुखर है
एक सतत अव्यक्त चाह है

यह जो मैं निज ‘मैं’ से चिपटा
यह भी एक वसन है लिपटा
इस छोटे-से तन में सिमटा
महासिंधु अविगत, अथाह है

जीवन तो केवल प्रवाह है!