bhakti ganga
तभी तक है सपनों का फेरा
जब तक तेरे मन से भ्रम का हटता नहीं अँधेरा
ज्यों ही छलकेगा नभ में रवि
मिट जायेगी सपनों की छवि
उस क्षण तेरे जीवन में, कवि!
होगा नया सवेरा
जिस पर तू रहता ललचाया
सब तेरे मन की है माया
वह तेरी अपनी है छाया
जिसने तुझको घेरा
मोह नष्ट होगा मन का जब
मिट जायेगी भागदौड़ सब
यहीं पड़ा रह जायेगा तब
सपनों का रथ तेरा
तभी तक है सपनों का फेरा
जब तक तेरे मन से भ्रम का हटता नहीं अँधेरा