bhakti ganga
तारा जो व्योम से गिरा
लक्ष्य विफल ढूँढ़ता फिरा
धरती ने कहा, ‘नहीं मेरा तू
और कही ढूँढ़ ले बसेरा तू
दूर क्या करेगा यह अँधेरा तू
आप महातिमिर से घिरा
चारों ओर जड़ता की माया थी
छलती उसे अपनी ही छाया थी
एक तुनुक तिनके की काया थी
और अतल सिन्धु अनतिरा
पर क्या बस जलते ही जाना था!
घेरे में चलते ही जाना था!
पथ उसे बदलते ही जाना था
छुए बिना ज्योति का सिरा!
तारा जो व्योम से गिरा
लक्ष्य विफल ढूँढ़ता फिरा