diya jag ko tujhse jo paya

मातृ-स्मृति

कभी ज्यों नभ-पथ से आती हो
लगता, जननी ! मुझे गोद में ले फिर दुलराती हो।

हलकी-सी है झलक हृदय में
देखा था तुमको शिशु-वय में
ज्यों फिर आकर उसी समय में

मुझको ले जाती हो

सपने-सा हैं अब वह वचपन
मलिन हो चुका स्मृति का दर्पण
पर मन रो उठता जब वे क्षण

फिर सम्मुख लाती हो

‘रो न पुत्र | तिर जीवन-धारा
पा लेगा तू मुझे दुबारा’
सुनता हूँ स्वर मधुर तुम्हारा

दिख न भले पाती हो

कभी ज्यों नम-पथ से आती हो
लगता, जननी ! मुझे गोद में ले फिर दुलराती हो।

7 जून 1996