diya jag ko tujhse jo paya
काल ने जब भी मुझको घेरा
मैंने मस्तक पर पाया है हाथ, दयानिधि! तेरा
श्रद्धा रख तेरी करुणा में
भावी से निश्चिन्त रहा मैं
तू ही जब था बाँहें थामे
क्यों डरता मन मेरा!
पा तेरी ममता का संबल
बढ़ता रहा लक्ष्य पर प्रतिपल
यदपि हृदय की लौ थी चंचल
निगल सका न अँधेरा
क्यों सोचूँ अब, तट झलकाकर
रही न कृपा पूर्व-सी मुझपर
बदल गये ज्यों सब घर-बाहर
तूने भी मुँह फेरा!
काल ने जब भी मुझको घेरा
मैंने मस्तक पर पाया है हाथ, दयानिधि! तेरा