diya jag ko tujhse jo paya
कैसे तुझे रिझाऊँ स्वामी!
तू रीझे तो सब जग रीझे, मेरे अन्तर्यामी!
क्या मैं गायक बनकर आऊँ
तेरे गुण गा-गा यश पाऊँ
या तुझ पर वह कृति रच लाऊँ
कीर्ति बने अनुगामी
पर क्या कोरी कीर्ति कमाये
यदि चित में वैराग्य न आये
मोह अहं का छूट न पाये
रहूँ सदा सुखकामी!
मुझे भले ही अमर न कर दे
पर निष्ठा उनकी-सी भर दे
तूने अचल भक्ति का वर दे
जिनकी उँगली थामी
कैसे तुझे रिझाऊँ स्वामी!
तू रीझे तो सब जग रीझे, मेरे अन्तर्यामी!