diya jag ko tujhse jo paya
छोड़ दे ममता इस वीणा की
ओ वादक! अब इस पर तेरी धुन न जायगी आँकी
गाता था तू जिन्हें गले लग
इसके वे सुर भुला चुका जग
अब न बजेंगी तेरे सँग-सँग
ध्वनियाँ बाँकी-बाँकी
जीर्ण-शीर्ण इस वीणा को ले
क्यों तू नगर-नगर यों डोले!
कैसे यह श्रुति के पट खोले
दे अनंत की झाँकी!
नये तार, नव तंत्री लेकर
छेड़ेगा जब तू नूतन स्वर
तभी सुनेगा यह जग सादर
ध्वनि तेरी रचना की
छोड़ दे ममता इस वीणा की
ओ वादक! अब इस पर तेरी धुन न जायगी आँकी