diya jag ko tujhse jo paya

जिसने हँस-हँस गरल पिया है
सच कह दूँ तो उसने ही जीवन को सही जिया है

दीप चमकता घन तम पाकर
झंझा देख नाचता सागर
वीर वही जिसने हँस-गाकर

दुख को झेल लिया है

मन! तू क्यों रहता घबराया!
क्या गीता ने यही सिखाया!
जिससे जग में सब कुछ पाया

उसको भुला दिया है

डर मत, धुआँ उठे जब घर से
प्रभु-कृपा अम्बर से बरसे
क्या न सदा ही तुझे भँवर से

उसने पार किया है

जिसने हँस-हँस गरल पिया है
सच कह दूँ तो उसने ही जीवन को सही जिया है