diya jag ko tujhse jo paya

तेरे सुख-दुख का क्या मोल!
मन रे! इन अगणित लोकों से क्षुद्र अहं को तोल

तारों भरे असीम गगन में
कितने जग मिटते क्षण-क्षण में
सुखी न हो यदि तू जीवन में

क्या क्षति उसकी! बोल

अटल कर्मफल नियम सुयोजित
तेरे हित क्यों हो परिवर्तित!
अपनी सीमा समझ, मूढ़! नित

पीट न दुख का ढोल

शत ब्रह्मांडों में रविमंडल
रविमंडल में भू का अंचल
भू पर चिति, चिति में विवेक-बल

कम हैं! आँखें खोल

तेरे सुख-दुख का क्या मोल!
मन रे! इन अगणित लोकों से क्षुद्र अहं को तोल