diya jag ko tujhse jo paya
द्वंद्व जग के चित में न धरूँगा
अम्बे! मैं तो बनकर तेरा हंस यहाँ विचरूँगा
मिले नहीं मोती के दाने
मत कोई गुण-रूप बखाने
तू कृपालु तो, रण भी ठाने
काल, न तनिक डरूँगा
पड़े पहाड़ दुखों का भारी
सुन तेरी वीणा-ध्वनि प्यारी
पल में भय-चिंताएँ सारी
मन से दूर करूँगा
जो कुछ भी हों पुण्य कमाये
जब उनसे सुख ही सुख पाये
कल यदि दैव हाथ फैलाये
तो ऋण क्यों न भरूँगा
द्वंद्व जग के चित में न धरूँगा
अम्बे! मैं तो बनकर तेरा हंस यहाँ विचरूँगा