diya jag ko tujhse jo paya
दिया जग को तुझसे जो पाया
तेरे ही प्रसाद को मैंने जन-जन तक पहुँचाया
मेरे ह्रदय-कुञ्ज में आकर
नये-नये नित रास रचा कर
मुझे मयूर-मुकुट पहना कर
तूने ही था गाया
पा तेरी करुणा कल्याणी
सार्थक, सफल हुई है वाणी
अब यह देव-काव्य वरदानी
मिटे न कभी मिटाया
वर दे, गति जो भी हो आगे
मुझे, नाथ ! यह कृपा न त्यागे
फिर नित नव कृतित्व-सुख जागे
मिले नयी जब काया
दिया जग को तुझसे जो पाया
तेरे ही प्रसाद को मैंने जन-जन तक पहुँचाया