diya jag ko tujhse jo paya
मन यदि पूर्णकाम रह पाये
तो चिंता क्या हो मुझको, जो कुछ आना हो आये
संभव नहीं, भाग्यलिपि मेटूँ
साध यही, जब भू पर लेटूँ
महाकाल से हँसकर भेंटूँ
जी न तनिक घबराये
क्यों सोचूँ, गति कल क्या होगी!
कहूँ मृत्यु से, – क्या कर लोगी!
मन तो निज कविता-रस-भोगी
नित भू पर मँडराये
पिछले हितू, कुटुंब, सुहृद् वर
यहाँ जुड़े जो एक-एक कर
विनय यही, प्रभु! फिर आने पर
उनका सँग मिल जाये
मन यदि पूर्णकाम रह पाये
तो चिंता क्या हो मुझको, जो कुछ आना हो आये