diya jag ko tujhse jo paya
माना, यही वसंत न होगा
पर तुझसे आरम्भ न जग का, तुझपर अंत न होगा
सभा जुड़ेगी नित ऐसे ही
ऐसी छवि, ऐसे ही स्नेही
ज्योति अमर है, दीप भले ही
यह द्युतिवंत न होगा
सूत्र चेतना का कब टूटे!
काल मरण-भय देता झूठे
यह अस्मिता रहे या छूटे
प्राण अनंत न होगा
माना, यही वसंत न होगा
पर तुझसे आरम्भ न जग का, तुझपर अंत न होगा