diya jag ko tujhse jo paya
मेरी वीणा मौन न होगी
नव-नव धुन में जाग उठेगी, ज्योंही तुम सुर दोगी
शिथिल हुई जाती हो क्षण-क्षण
रुक न सकेगा इसका गुंजन
बरसेंगे मधुमय रस के घन
तार जभी छेड़ोगी
विविध वर्ण के प्यालों में भर
इसका दिव्य सोमरस पीकर
झूमेंगे मानस लहरों पर
योगी हों या भोगी
संवाहक मैं इस मधु का हूँ
गौरव-गान और क्या चाहूँ
क्यों न, देवि! निज भाग्य सराहूँ
किया मुझे सहयोगी!
मेरी वीणा मौन न होगी
नव-नव धुन में जाग उठेगी, ज्योंही तुम सुर दोगी