diya jag ko tujhse jo paya

लगन सच्ची है यदि इस मन की
तो निश्चय ही पत रख लेगा वह प्रभु अपने जन की

जब भी झंझानिल था आता
जो इस लौ को रहा बचाता
क्या न साधु जन का वह त्राता

सुधि ले अंतिम क्षण की!

जब उसका प्रण स्मृति में आये
लय होने का भय न सताये
जप की सुख समाधि लग जाये

ममता छूटे तन की

है विश्वास मुझे तो उस क्षण
उसके चरणों में यह जीवन
सहज सौंप दूँगा निर्भय बन

पीड़ा भुला मरण की

लगन सच्ची है यदि इस मन की
तो निश्चय ही पत रख लेगा वह प्रभु अपने जन की