diya jag ko tujhse jo paya
सुरों के बंधन मैंने खोले
जी चाहे जिस धुन में गायें गुणिजन अब इनको ले
पिंजरबद्ध रहे जो शुक-से
ढँके राग के रत्नांशुक से
सुन मेरे पद उनके मुख से
पाहन-मन भी डोले
गाँव-गाँव में, नगर-नगर में
सुर अब गूँजेंगे घर-घर में
भाव रूप लेगा अंतर में
जब रसना रस घोले
सुख-दुख, मिलन-विरह, जय-क्षय में
हो कोई भी राग हृदय में
लुक-छिपकर गीतों की लय में
मेरा कवि भी बोले
सुरों के बंधन मैंने खोले
जी चाहे जिस धुन में गायें गुणिजन अब इनको ले