diya jag ko tujhse jo paya

स्नेह तेरी करुणा का पाकर
दीप जलाये जो मैंने, ज्योतित कर दें भव-अंतर

इनमें सहज समर्पण मेरा
काव्य बन गया वंदन मेरा
वर दे, माँ! यह जीवन मेरा

हो इनमें चिर भास्वर!

पता नहीं, किन पुण्य क्षणों में
ध्यान लगा तेरे चरणों में
मान मिला जो सुधीजनों में

रजकण चढ़ा गगन पर

अब यह राग न रुकने पाये
जग की धुन मन को न लुभाये
इस जड़ वंशी में से आये

माँ! अब तेरा ही स्वर

स्नेह तेरी करुणा का पाकर
दीप जलाये जो मैंने, ज्योतित कर दें भव-अंतर