ek chandrabimb thahra huwa
मैंने प्रेम के पथ पर तो पाँव दे दिये,
सिर कटने से सदा मुँह मोड़ता रहा,
माला तो निरंतर फेरता गया
पर मैनकों की संख्या भी मन-ही-मन जोड़ता रहा।
जिसे लुटा देना था
वह मेरी मुट्ठी से छूट नहीं सका
और जिसे पा लेना था
उसे बढ़कर लूट नहीं सका।