ek chandrabimb thahra huwa
क्या फूल को मुट्ठी में लेकर तब तक मसलते जाना है
जब तक उसका रेशा-रेशा समाप्त न हो जाय,
उसकी संपूर्ण अस्मिता
हमारी चेतना में व्याप्त न हो जाय!
सच्चा प्रेमी तो वही है
जो स्वयं को ही फूल की सुगंध में बदल लेता है,
पंखड़ियों को हाथ लगाये बिना ही
झूमता हुआ बाग़ से चल देता है।