geet ratnavali

कभी मेरी सुधि भी आयी है,
सीता की तो विरह-वेदना स्वामी ने गायी है!

क्यों मंगलपद रचे अनूठे
यदि विवाह-बंधन थे झूठे!
कैसे वे मुझसे यों रूठे

झलक न दिखलायी है!

ज्यों ही शोध प्रिया की जानी
प्रभु ने लंका-जय की ठानी
सखि! मेरी तो करुण कहानी

घर-घर में छायी है

तन में भले भभूत रमायी
मन से क्यों मैं गयी भुलायी!
राम-कथा क्या मुझे न भायी

क्यों यह निठुरायी है !

कभी मेरी सुधि भी आयी है,
सीता की तो विरह-वेदना स्वामी ने गायी है!