geet ratnavali
प्रिया को कभी भुला भी पाये,
बहुत भक्ति के तो, पाहुनजी! गीत आपने गाये!
वह अबोध थी, लाजभरी थी
नयनों में निद्रा गहरी थी
देख अकल्पित प्रीति डरी थी
जब वे व्यंग्य सुनाये
कवि थे आप धनी प्रतिभा के
क्यों न हृदय में उसके झाँके?
वचन प्रेम-गर्विता प्रिया के
थे परिहास छिपाये
गुनी न कंकण-किंकिणि की धुन
डरा न मन नभ-घन-गर्जन सुन
सच कहिए कि कभी दो सकरुण
नयन न स्मृति में आये!
प्रिया को कभी भुला भी पाये,
बहुत भक्ति के तो, पाहुनजी! गीत आपने गाये!