geet ratnavali
प्रीति की रीति भली अपनायी!
निरपराध पत्नी को त्यागा, यह क्या किया, गुसांईं!
कहकर उमा, रमा, ब्रह्माणी
जिसकी महिमा सदा बखानी
बोलें, कविवर! सुर, मुनि, ज्ञानी
‘कांता किसे न भायी’!
रामकथा ने मानस-पट पर
आँका यही चित्र था सुंदर!
‘लायें जिसका हाथ पकड़कर
छोड़ें कर निठुराई’!
कर सुख-भोग लोकहित स्वाहा
प्रभु ने जब नृपधर्म निबाहा
क्या न प्रिया को पाना चाहा
फिर जब सन्मति आयी!
प्रीति की रीति भली अपनायी!
निरपराध पत्नी को त्यागा, यह क्या किया, गुसांईं!