geet ratnavali

प्रिया को दे वियोग परिताप,
कैसे मन माना कि कभी आये न पलटकर आप!

एक क्रौंच खग का सुन क्रंदन
लिखी आदि कवि ने रामायण
कैसे सहा किये पत्थर बन

कवि निज प्रिया-विलाप!

राम-वियोग-विकल वैदेही
गयी आपको रुला भले ही
पर रत्ना की सुधि आते ही

हाथ गये क्यों काँप!

जग को तो दे रहे अमृत, पर
पत्नी तड़पा की विष पाकर
राम-मन्त्र दे उसने कविवर

किया कौन-सा पाप!

प्रिया को दे वियोग परिताप,
कैसे मन माना कि कभी आये न पलटकर आप!