geet vrindavan

‘मुरली राधा ने भिजवायी’
सुनते ही मुरलीधर ने अधरों से पुलक लगायी

विकल हो उठे सम्मुख पाकर
मोरपंख के संग पीताम्बर
आँसू लिए पत्र के अक्षर

पढ़ पाये न कन्हाई

मन उड़ कर पहुँचा वृन्दावन
लहराए दृग में करील-वन
सजल-नयन राधा चलते क्षण

ज्यों फिर पड़ी दिखायी

उलट-पलट पत्री निज कर में
रुद्ध-कंठ वाष्पाकुल स्वर में
कुछ भी कह न सके उत्तर में

फिर फिर मूर्छा आयी

‘मुरली राधा ने भिजवायी’
सुनते ही मुरलीधर ने अधरों से पुलक लगायी