geet vrindavan
कोई राधा से कह देता
उसके लिये विकल है अब भी गीता-शास्त्र-प्रणेता
‘यद्यपि योगेश्वर कहलाता
मैं सुख:दुःख में सम रह जाता
किन्तु ध्यान जब उसका आता
चुपके से रो लेता
‘साथ रुक्मिणी के भी रहकर
उसे न भूल सका मैं पल भर
आता हूँ नित यमुना तट पर
मन की नौका खेता’
कोई राधा से कह देता
उसके लिये विकल है अब भी गीता-शास्त्र-प्रणेता