geet vrindavan

‘मन के तार तुझी से बाँधे
जीवन के अंतिम पल तक हम अलग न होंगे, राधे!’

‘साज भिन्न हो समय-समय का
राग न छूट सका नव वय का
सुर अब भी है वही हृदय का

लाख जोग-जप साधे

‘वेणु बजाता वंशीवट पर
फिरता हूँ नित यमुना-तट पर
तुझे देखता हूँ पनघट पर

नयन खोलकर आधे

‘फिर-फिर वृन्दावन में आ के
रँग देता हूँ तिरछे-बाँके
प्रिये हमारे प्रेम-कथा के

पृष्ठ रहे जो सादे’

‘मन के तार तुझी से बाँधे
जीवन के अंतिम पल तक हम अलग न होंगे, राधे!’