geet vrindavan
लौट कर व्रज में कैसे जाऊँ
सखियाँ देख रही हैं छिपकर, क्या मुँह उन्हें दिखाऊँ!
जब न रहा जीने का साधन
क्यों फिर व्यर्थ रहे यह जीवन!
सीता-सी ही ले दुखिया मन
भू में क्यों न समाऊँ !
पर कब प्रिय से दूर गयी है!
क्या न राधिका श्याममयी है!
यह व्रजलीला नित्य नयी है
रूठूँ, आप मनाऊँ
दुःख न करें, प्रभु! मेरे कारण
सदा एक हैं अपने जीवन
गिरें नयन से बस दो जलकण
याद कभी यदि आऊँ
लौट कर व्रज में कैसे जाऊँ
सखियाँ देख रही हैं छिपकर, क्या मुँह उन्हें दिखाऊँ!