geet vrindavan
तृण की ओट छिपे गिरधारी
मधुवन के कुंजों में राधा ढूँढ़-ढूँढ़ कर हारी
मुरली-ध्वनि कानों में आती
झलक पीत पट की मिल जाती
पर नयनों को दीख न पाती
प्रिय-मुख की छवि प्यारी
जान रही वह, जाने वाले
नहीं लौट कर आने वाले
फिर भी झूठी आशा पाले
फिरती दुख की मारी
वही तमाल, वही यमुना जल
नभ में वही घिरे घन श्यामल
पर सूना है अब ब्रजमंडल
सूने भवन, अटारी
तृण की ओट छिपे गिरधारी
मधुवन के कुंजों में राधा ढूँढ़-ढूँढ़ कर हारी