ghazal ganga aur uski lahren

भरम ही मेरा कि जादू तेरी मुस्कान में है
हुक्म फाँसी का भी, जीने की दुआ कान में है

तू भले ही कभी नज़रों को न आता है नज़र
तेरे क़दमों की तो आहट मेरी हर तान में है

मेरा हर लफ़्ज़ है मनका मेरी सुमरनी का
ज़िंदगी मेरी क़सीदा ही तेरी शान में है

मुझे है फिर यहीं आना, हसीन कितना भी
अखाड़ा इंद्र की परियों का आसमान में है

गुलाब है यहाँ, बुड्ढा नहीं है कोई, जनाब !
हो-न-हो भूल ही कुछ आपकी पहिचान में है