ghazal ganga aur uski lahren

भले ही चाँद-सितारों में ढूँढ़ हारी नज़र
कभी तो आयेगी सूरत मुझे तुम्हारी, नज़र

साथ भी रहके न कह पाये कभी दिल की बात
रह गयी प्यार छिपाये हया की मारी नज़र

छिपाये छिप नहीं सकती है बेकली दिल की
करे भी प्यार पर कितनी ही पहरेदारी नज़र

वही हो तुम, वही मैं हूँ, वही है दुनिया भी
खो गयी जाने कहाँ, कैसे, वह कुँवारी नज़र

अब तो आईने में मुँह देखते घबराता हूँ
हाय ! मुझको लगी किस शख़्स की हत्यारी नज़र

क़बूल कैसे हो, चढ़ती है जहाँ सर की भेंट
मैंने की है, महज़ लफ़्ज़ों की अदाकारी, नज़र

गुलाब! खुल न सका राज़ उसके जल्वों का
देखती हुस्न की जल्वागरी को हारी नज़र