ghazal ganga aur uski lahren

224
एक अनजान बिसुधपन में जो हुआ सो ठीक
सोच किस-किस का हो जीवन में, जो हुआ सो ठीक
225
एक अनजान-से घेरे में बंद हैं हम लोग
ख़ुद अपने मन के अँधेरे में बंद हैं हम लोग
226
एक अनबुझी-सी चाह मेरे साथ रही है
हरदम तेरी निगाह मेरे साथ रही है
227
एक एहसास की रंगत के सिवा कुछ भी नहीं
ज़िंदगी ग़म की हक़ीक़त के सिवा कुछ भी नहीं
228
एक ख़ुशबू-सी ख़यालों में बसी रहती है
साथ हरदम है कोई ख़ुशनुमा, लगा है मुझे
229
एक गर्दिश से दूसरी गर्दिश
ज़िंदगी, बस ये सिलसिला समझें
230
एक जान के दुश्मन को बनाया है दिल का दोस्त
बुझते दिये को लेके हवा में हुए हैं हम
231
एक ठोकर और प्याला चूर-चूर
लौट जाने का बहाना ख़ूब है
232
एक तस्वीर थरथरायी हुई
यही दुनिया की यादगार है आज !
233
एक ताजमहल प्यार का यह भी है, दोस्तो !
है इसमें ज़िंदगी मेरी, कुछ और नहीं है
234
एक तेरे ही लिये बात नयी क्या है, ‘गुलाब’ !
जो भी इस राह से गुज़रा है, तड़पता ही गया
235
एक दिन बाग़ से ख़ुद ही चले जायेंगे गुलाब
आज खिलते हैं अगर, आपका क्या लेते हैं !
236
एक दिल की राह में आया था छोटा-सा मुक़ाम
हम उसीको प्यार की मंज़िल समझकर रह गये
237
एक दिल भी धड़कता रहा
चाँदनी के हिंडोलों तले
238
एक दीपक नहीं जल सका
लाख दीपक बुझाये गये
239
एक प्याले के लिये कौन तड़पता इतना !
ज़िंदगी ! हम तेरी हर साँस पिया चाहते हैं
240
एक बिजली-सी घटाओं से निकलती देखी
प्यार की लौ तेरी आँखों में मचलती देखी
241
एक लौ आँधियों से बुझी
और बुझकर भी जलती रही
242
एक वीरान-सा मैदान शहर के आगे
क्या पता और दें हम, दोस्त ! वही अपनी जगह
243
एक शोख़ की नज़र ने खिलाये हैं ये गुलाब
यों ही हवा की तान पर बहते नहीं हैं हम
244
एक से एक बढ़कर चले
सब लुटे राह में काफ़ले
246
एक-से हैं अब हमें, बरसा करें पत्थर कि फूल
ज़िंदगी यह हमको लायी है कहाँ पर, देखिए
245
एक-से-एक है तस्वीर इन आँखों में बसी
जब जिसे चाहते, सीने से लगा लेते हैं
247
एक हमींको क्यों दुनिया ने दीवाने का नाम दिया
जबकि हमारी हर धड़कन में आप भी हिस्सेदार हुए !
248
एक ही चितवन से उनकी हो गये बरबाद हम
एक चिनगारी बहुत थी घर जलाने के लिये
249
एक ही पल तो हमारे प्यार का
वह भी टलता ही रहेगा रात भर
250
एक ही रात है, नींद एक है, बिस्तर है एक
एक आँखों का हो सपना मगर आसान नहीं
251
एक ही शीशे का दिल था जिसको ले
हम हरेक पत्थर से टकराया किये
252
ऐ आनेवाले ! कुछ तो उधर की ख़बर बता —
‘क्या ख़त्म दोस्ती के सभी सिलसिले हुए !’
253
ऐ ग़म ! न छोड़ना हमें इस ज़िंदगी के साथ
पकड़ा है तेरा हाथ बड़ी बेबसी के साथ
254
ऐसी बहार फिर नहीं आयेगी मेरे बाद
कोयल भले ही कूक सुनायेगी मेरे बाद !
255
ऐसे गुमसुम नहीं हमने कभी देखे थे गुलाब
मुँह भी दुनिया ने फिराया है, आप चुप क्यों हैं !
256
ऐसे तो कभी उस महफ़िल में आयी थी हमारी चर्चा भी
हाथों से छिटककर टूट चुके प्याले की कहानी, क्या कहिए !
257
ऐसे तो किसीकी राह में हम, ये हार सजाये बैठे हैं
उड़ती ही चली जाती है मगर फूलों की जवानी, क्या कहिए !
258
ऐसे तो, ‘गुलाब’ ! आया न कभी प्याला तुम तक उन हाथों से
जो बात मगर कह जाती है चितवन बेगानी, क्या कहिए !
259
ऐसे तो, ‘गुलाब’ उन रातों की, हर बात लिखी है सीने पर
पर आख़िरी प्यार की घड़ियों में आँसू की रवानी, क्या कहिए !
260
ऐसे तो देखते उन्हें देखा न था कभी
आँखों में बेबसी का ज़हर देख रहे हैं
261
ऐसे तो बाग़ भर में है चर्चा गुलाब की
पर जो तेरी नज़रों में खिला, और ही कुछ है
262
ऐसे तो हमको आपने देखा न था कभी
हर बार इस गली से निकलते रहे हैं हम
और क्या दाँव पर लगायें अब !
लग चुका सब तो पहले दाँव के साथ
264
और तड़पायेंगी यादें हमें इन ख़ुशियों की
आप क्यों हमपे ये एहसान किया चाहते हैं !
265
और तो चाहे कुछ न हुआ हो बाग़ में आने-जाने से
फूल समझकर उसने हमें भी आँख उठाकर देख लिया
266
और दम भर, और दम भर, आँधियो !
दो न दस्तक, दर पे यों शबनम के आ
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और दीवाने सभी चक्कर लगाकर रह गये
बस हमीं गलियों में तेरी, ज़िंदगी भर रह गये
268
और दो-चार घड़ी खेल उन आँखों में, ‘गुलाब’ !
फिर मिलेगी न तुझे रात परीख़ाने की
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और भी लाल होंगे गुलाब
उसने होंठों से हैं छू दिये
270
और भी हैं कई मजबूरियाँ, सँभल, ऐ दिल !
क्या हुआ, मिल गयी नज़रें भी जो अनजाने दो !
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और ले चल कहीं, ऐ दोस्त ! हरेक घर से यहाँ
एक कंकाल उघड़ता-सा नज़र आता है
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और ही उनकी निगाहों में खिल रहे हैं गुलाब
उनके होंठों पे छिड़े और ही सरगम हैं आज
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और ही कुछ है उस चितवन में जिसके लिये बेचैन हैं हम
यों तो नज़र के हर परदे को हमने हटाकर देख लिया
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और ही प्रेम के रंगों की है मीनाकारी
आपके रूप की वह जादूगरी और ही है
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और हों पीने को बेचैन
हम हैं नशे में प्यार के चूर
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और होंगे तेरी महफ़िल में तड़पनेवाले
तू निगाहें भी फिरा ले तो चले जायें हम