ghazal ganga aur uski lahren

649
चढ़ा था प्यार का कुछ ऐसा रंग आँखों पर
कली ख़ुद अपनी नज़र की शिकार होती रही
650
चढ़ा हुआ है सभी पर हमारे प्यार का रंग
कहीं न इससे बड़ा कीमिया समझते हैं
651
चढ़ी घूँट भर ही, क़दम डगमगाया
ये सच है, हमें अब भी पीना न आया
652
चमक रहे है हज़ारों तारे, भले ही हैं चाँद और सूरज
तलाश है जिस किरन की हमको, बस एक लेकिन, वही नहीं है
653
चमके न बाग़ में, न किसी हार में गुँथे
कुछ फूल तो खिलकर भी यहाँ अनखिले हुए
654
चरणों में बिछी उनके पँखुरियाँ गुलाब की
कुछ आख़िरी घड़ी में सँवर जाँय तो अच्छा
655
चल तो रहे हैं चाल बड़ी सूझ-बूझ से
उठने को है बिसात, मगर भूल रहे है
656
चलता है साथ-साथ कोई यों तो राह में
बेगानापन भी कुछ है मगर उस निगाह में
657
चलते-चलते कटी ज़िंदगी
फ़ासिले हाथ भर के रहे
658
चलते-चलते मिल ही जायेंगे कभी
ज़िंदगी का ताना-बाना चाहिए
659
चला तो बाँधके जीवन में उमीदों की गाँठ
मगर जो डोर सरक जाय, क्या करे कोई !
660
चली ये कैसी हवायें, उदास है हर फूल !
नहीं गुलाब में पाते हैं रंग पहला हम !
661
चले जो हम तो चली साथ-साथ क़िस्मत भी
हरेक मुक़ाम पर पहले ये बेवफ़ा ही गयी
662
चले तो बाग़ से जाते हो, मगर याद रहे
जुही में फूल जो आयेंगे तो आना होगा
663
चले भी आइए, क्यारी में सौ गुलाब खिले
हमारे मन की अटारी में सौ गुलाब खिले
664
चले हैं खोजने किसको ये खोजनेवाले !
पता तो बस यही तेरा—‘कहीं भी कोई नहीं’
665
चलेंगे साथ न मिलकर, ये जानते हैं, मगर
नये-पुराने में थोड़ा-सा तालमेल तो हो
666
चाँदनी चुपके विदा हो जायेगी
चाँद ढलता ही रहेगा रात भर
667
चाँदनी फीकी पड़ने लगी है, उड़ने लगा है चाँद का रंग
आके गुलाब को देख भी लो अब, बीत न जाये प्यार की रात
668
चाक होने से दिल क्यों बचेगा, गुलाब !
अब तो काँटों से ही दोस्ती हो गयी
669
चाह अब भी हो उसे मेरी, ज़रूरी तो नहीं
उम्र भर याद हो बचपन की, ज़रूरी तो नहीं
670
चाहिए आँख देखने के लिये
है जो परदे में, बेनक़ाब भी है
671
चाहिए सबको गुलाब का रंग
प्यार की टीसें किसने सहीं !
672
चिराग बुझ न गये हों कहीं मकानों के
हवा में तैरती आती हैं सिसकियाँ कैसी !
673
चुप तो किसी भी बात पर रहते नहीं हैं हम
ऐसा ही कुछ है पर जिसे कहते नहीं हैं हम
674
चुप भी रहा जो कोई हमें देखकर तो क्या !
अच्छा है, दिल के वास्ते कुछ तो रहा भरम
675
चुप होके भी तो दो घड़ी बैठो नज़र के सामने
रुक-रुकके जब बरसे घटा तब है मज़ा बरसात का !
676
चुभन काँटों की भी कुछ बस गयी दिल में, ‘गुलाब’ ! ऐसी
कि इनको छोड़ना अपने से ही मुँह मोड़ना ठहरा
677
चुभाये हैं किसने ये काँटें, गुलाब !
खड़े हैं शहीदों की पाँतों में आप
678
चुभे हैं तन में तो काँटे हज़ार-लाख, मगर
गुलाब लाल हैं अब तक, कमाल है कि नहीं !
679
चूक कुछ तो थी हुई राह की पहचान में ही
दूर हम प्यार की मंज़िल से हर क़दम हैं आज
680
चूमते सर को गये सैकड़ों आँधी-तूफ़ान
उनको जीवन की तबाही में पुकारा भी नहीं
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चैन आया न घड़ी भर भी हमारे दिल को
अब किसी और की बारी है, इसे कुछ न कहो
682
चैन था, मर भी जाते अगर
यह तो मर-मरके जीना हुआ
683
चैन न आया दिल को घड़ी भर, हरदम वार पे वार हुए
आपने प्यार का खेल किया हो, हम तो बहुत बेज़ार हुए
684
चैन पायेंगे कभी और किसी दुनिया में
आज चलता नहीं तक़दीर पे बस, रहने दे
685
छिपाके रखलो कोई प्यार की किरन इसकी
पता नहीं कि दिया फिर कभी जले, न जले
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छिपाये छिप नहीं सकती है बेकली दिल की
करे भी प्यार पर कितनी ही पहरेदारी नज़र
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छीन मत हमसे पुतलियों की थिरकती ख़ुशबू
अपनी लट खोलके छितरा दे, बहस रहने दे
688
छूके होंठों को ये आँसू भी बन रहे हैं गुलाब
वसंत बन गयी सावन की रात, चुप भी रहो
689
छूट गया था साथ भले ही, प्यार पे आँच न आयी मगर
जब भी मिले राहों में कभी हम, उसने लजाकर देख लिया
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छूटे हैं जबसे आपकी पलकों की छाँह से
पल भर कहीं भी चैन से रहते नहीं हैं हम
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छेद यों बाँसुरी में कई
फिर भी सुर का तो निर्वाह है
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छोड़ दी सादी जगह ख़त में हमारे नाम पर
बेलिखे ही उसने जो कुछ लिख दिया, समझे हैं हम