ghazal ganga aur uski lahren

693
‘जगह कहीं पे हमारी भी दिल में है कि नहीं ?’
सवाल आज उन्हींसे करेंगे सीधा हम
694
जतन से ओढ़के चादर तो ज्यों-की-त्यों धर दी
मगर कहीं थे किनारी में सौ गुलाब खिले
695
ज़ब्त होता नहीं, माँझी ! अब उठा दो लंगर
नाव को फिर किसी तूफ़ान से टकराने दो
696
जब क़यामत में ही होगा फ़ैसला हर बात का
तू ही बतला, हम तेरे वादे को लेकर क्या करें !
697
जब कहा उनसे– ‘खिले आज तो होंठों पे गुलाब’
हँसके बोले कि हैं माली के, हमारा क्या है !
698
जब कहा उनसे– ‘मिटे आपकी चाहत में गुलाब’
हँसके बोले कि मगर हमने ये कब चाहा था !
699
जब कहा– ‘गुलाब को चलके देख लीजिए’
बोले ‘आख़िरी है अब, दम न हों तो क्या करें !’
700
जब कहा—‘देखिए खिले हैं गुलाब’
बोले– ‘हम तो पलास देखेंगे’
701
जब किसी और ने मुड़कर भी न देखा इस ओर
हमने धीरे-से तुझे दिल में तब पुकार लिया
702
जब डूबना है क्यों भला माँझी का लें एहसान !
दो हाथ और पास किनारे हुए तो क्या !
703
जब तक सजाके ख़ुदको हम आते हैं मंच पर
परदा ही सामने का गिराते हो, ये क्या है !
704
जब तू न रहेगा तो तेरी याद रहेगी
काग़ज़ रहें सादे, कभी ऐसा नहीं होगा
705
जब तेरा दर क़रीब होता है
हाल दिल का अजीब होता है
706
जब दिल में रह गया न तड़पने का हौसला
उन शोख़ निगाहों के इशारे हुए तो क्या !
707
जब न कोई लगाव है हमसे
ये इशारे क़दम-क़दम क्या हैं !
708
जब नज़र मोड़के चुपके से चले जाना था
दो घड़ी के लिये सीने से लगाया क्यों था !
709
जब नाव लेके निकले, तूफ़ान का डर कैसा !
कुछ और तेज़ धारा हो भी अगर, तो क्या है !
710
जब निगाहें फेरकर जाते हैं दुनिया से गुलाब
कोई लाया है ख़बर—‘वह बेख़बर आने को है’
711
जब वही बीच से उठ गये
अब न गाने का उत्साह है
712
जब शहर में किसी दीवाने की फ़रियाद सुनो
मेरी इन प्यार की ग़ज़लों को याद कर लेना
713
जब हमें लौटना नहीं है यहाँ
फिर ये वादे तेरे, किस काम के हैं !
714
ज़माना हो गया आँखों का खेल चलते हुए
गले से आज तो लगिए कि जा रहा हूँ मैं
715
ज़माने भर की निगाहों से टालकर लाये
हम उनके प्यार को कितना सँभालकर लाये !
716
ज़रा अपने आँचल का साया तो कर लो
दिया हूँ, हवा से बुझा चाहता हूँ
717
ज़रा आँसू तो थम जायें कि उनको
नज़र भर देख लें जाने के पहले
718
ज़रा उँगली पकड़कर दो क़दम चलना सिखा जाओ
पले फूलों में हम, काँटों पे पग धरना नहीं आता
719
जलाकर ख़ाक कर देती है अपने मिलनेवालों को
हमारे दिल को पर इस आग से डरना नहीं आता
720
जलते हैं आँसुओं के दिये
उम्र अब आह ही आह है
721
जवाब जिसका नहीं आज तक हुआ मालूम
सवाल उनकी निगाहों में कोई और भी है
722
ज़हर को पीके भी होंठों से बाँसुरी फूँकी
अँगूठा साँप के फन पर दबाके रक्खा है
723
जहाँ किसीकी नज़र भी नहीं लगे उस पर
तुम्हारे प्यार को ऐसे छिपाके रक्खा है
724
जहाँ चाँद-सूरज हैं, तारे हैं लाखों
दिया एक हम भी जलाये हुए हैं
725
जहाँ-जहाँ थी क़सम प्यार की खायी तुमने
वहीं-वहीं पे नज़र मेरी बार-बार गयी
726
जहाँ पे दोस्त कई मुँह फिराके छोड़ गये
ये बीच-बीच में आती हैं बस्तियाँ कैसी !
727
जहाँ था प्यार नज़रबन्द आँसुओं से कभी
उसी चहारदिवारी में सौ गुलाब खिले
728
जहाँ पे बैठके छेड़ी थी हमने प्यार की तान
तुम्हें भी याद वो फूलों की डाल है कि नहीं
729
जहाँ भी दिल ने पुकारा वहीं जाना होगा
उन्हें भुलाना तो ख़ुद को ही भुलाना होगा
730
जहाँ भी हमको मिली राह कोई जानी हुई
वहीं से पाँव को तिरछा हटाके रक्खा है
731
जहाँ भी होती है चर्चा तेरी रंगीनी की
हमारा नाम भी लेते हैं सादगी के लिये
732
जहाँ से हुई थीं अलग अपनी राहें
वहीं से हुई एक दोनों की छाया
733
जा रहा है कोई मुँह फेरके अब तुझसे, गुलाब !
आ गया वह भी किसी और के बहकाने में
734
जा रहे मुँह फेरकर भौंरे, गुलाब !
आपकी ख़ुशबू में दम कुछ भी नहीं
735
जाओ जहाँ भी, सुख से रहो हमको भुलाकर
धारा है तेज़, लौट रहे हैं यहीं से हम
736
जान उन पर लुटाके बैठ गये
हम भी उस दर पे जाके बैठ गये
737
जान देना तो है आसान बहुत लपटों में
उम्र भर आग में तपना मगर आसान नहीं
738
जान देने का हमारे दिल में भी है हौसला
चाहते हैं खेलना कुछ हम भी अंगारों से आज
739
जान ले ले, मगर शर्त है
तेरे क़दमों में निकले ये दम
740
जान हाज़िर है, लेकिन, हुज़ूर !
अपनी सूरत तो दिखलाइए
741
जानते हम जो चुभायेगा तू काँटे भी, गुलाब !
भूलकर भी न क़दम बाग़ में रक्खा होता !
742
जाना किधर है, आये कहाँ से, पता नहीं
कोई चलाये जा रहा, चलते रहे हैं हम
743
जानेवाले तो ठहरे नहीं
लाख दुनिया मनाती रही
744
ज़िंदगी ऐसे ही मस्ती में गुज़र जाने दे
तार ढीले ही सही, तार न कस, रहने दे
745
ज़िंदगी की किताब ख़त्म हुई
मुड़के देखा न हाशिया तुमने !
746
ज़िंदगी की रात है यह एक ही तेरी, गुलाब !
और वह भी है फ़क़त आँसू बहाने के लिये
747
ज़िंदगी की हाट में वे रंग बिकते हैं, ‘गुलाब’ !
जिनको लाया था तू उनका प्यार पाने के लिये
748
ज़िंदगी ! कुछ तो भर दे प्याले में
हम भी पीने उधार बैठे हैं
749
ज़िंदगी के ठाठ पर मत जाइए
यह निगाहें फेर लेगी एक दिन
750
ज़िंदगी के थपेड़ों से मुरझा गये, हम भी थे उनकी नज़रों के क़ाबिल कभी
बाग़ में कह रहा था गुलाब एक यों—‘हमको ऐसे भुलाना नहीं चाहिए’
751
ज़िंदगी कैसे कटी तेरे बिना, कुछ मत पूछ
यों तो कहने को बहुत कुछ है, मगर जाने दे
752
ज़िंदगी को यों ही भरमाया किये
प्यार को सपनों से बहलाया किये
753
ज़िंदगी खींचकर हमको लायी किन सुलगती हुई बस्तियों में
होंठ हँस भी रहे हों मगर अब मुस्कुराने की बातें नहीं हैं
754
ज़िंदगी ख़ुद ही उतरती गयी है प्याले में
वर्ना पीने की हमें लत कभी ऐसी तो न थी !
755
ज़िंदगी थी किरन प्यार की
तीर पर आँसुओं के रही
756
ज़िंदगी दर्द का दाह है
प्यार छाँहों भरी राह है
757
ज़िंदगी फिर कोई पाते तो और क्या करते !
आपसे दिल न लगाते तो और क्या करते !
758
ज़िंदगी मरने से घबराती भी है
चढ़के सूली पर कभी गाती भी है
759
ज़िंदगी मुझको कहाँ आज लिये जाती है !
दूर तक अब कोई आवाज़ नहीं आती है
760
ज़िंदगी में यह सवाल उठता है अक्सर, ‘क्या करें !‘
बेसहारा, बेअसर, बेआस, बेपर, क्या करें !
761
ज़िंदगी रेत के टीलों में गुज़ारी हमने
इस बयाबान में दो-चार क़दम और सही
762
ज़िंदगी सच है, मिली दर्द की लज़्ज़त के लिये
कोई यह भी तो कहे, दर्द का हासिल क्या है
763
ज़िंदगी हमको पिलाती है ज़हर के प्याले
और पायल भी बजाती है हर क़दम के साथ
764
ज़िंदगी है कि हरेक हाल में कट जाती है
आपने दिल से भुलाया है, कोई बात नहीं
765
जिन्हें देखकर था नशा चढ़ गया
वही कह रहे, पीके आये हैं हम
766
जिन्हें भाते नहीं हैं बाग़ में काँटे, गुलाब ! उनको
कभी फूलों से सच्चा प्यार भी करना नहीं आता
767
जिनको कस्तूरी के हिरनों-सी है ख़ुशबू की तलाश
दो घड़ी हम उन्हीं आँखों में जिया चाहते हैं
768
जिनको भाती रही गुलाब की रूह
अब वे मेहँदी लगाके बैठ गये
769
जिनको सुर भाते ग़ज़ल के वे तो कबके जा चुके
अब इन्हें गाये तो क्या ! कोई नहीं गाये तो क्या !
770
जिनको हमारे दिल की उदासी रुला गयी
दुनिया में ऐसे दोस्त भी दो-चार तो रहे
771
जिस पर नज़र पड़ी न बहारों की आज तक
ऐसे भी एक ‘गुलाब’ गया में हुए हैं हम
772
जिसको कहते हैं, ‘गुलाब’ ! आपका दीवानापन
एक रंगीन तबीयत के सिवा कुछ भी नहीं
773
जिसने गुलाब में काँटे चुभाये, उसने बड़ा एहसान किया है
कौन नहीं तो प्यार में करता, मेरी तरह गुमनाम की बातें !
774
जिसने भेजा था घड़ी भर तुझे खिलने को, ‘गुलाब’ !
फ़िक्र क्या, जो वही आवाज़ दे घर आने की !
775
जिसने मर-मरके है औरों को ज़िंदगी दे दी
जो सच कहें तो उसी शख़्स को जीना आया
776
जिसमें हम-तुम भी छूटते पीछे
प्यार में ऐसा एक मुक़ाम भी है
777
जिसे तूने था कभी छू दिया, वो गुलाब और गुलाब था
कहूँ अपने दिल को मगर मैं क्या, जो नशे में आज भी चूर है !
778
जिसे देखने को खड़ा था ज़माना
वो परदा गिराकर चला जा रहा है
779
जिसे बेरुख़ी था समझा, वो नज़र थी बेबसी की
तेरी आँख भर ही आयी, मुझे छोड़ने के पहले
780
जी तो भरता नहीं इन आँखों की ख़ुशबू से, मगर
ज़िंदगी का बड़ा लंबा है सफ़र, जाने दे
781
जी से हटती ही नहीं याद किसीकी गुमनाम
जैसे बीमार के आँगन से बरसती हुई शाम
782
जीने का कोई हासिल न मिला, आख़िर यह उम्र तमाम हुई
फिर दिन निकला, फिर रात ढली, फिर सुबह हुई, फिर शाम हुई
783
जुही में फूल जब आये, हमें भी याद कर लेना
नज़र जब ख़ुद से शरमाये, हमें भी याद कर लेना
784
जो आ सको तो अभी आके एक नज़र देखो
नहीं तो कल कहीं बीमार ही रहे, न रहे
785
जो आप आते हैं तो चाँदनी आ जाती है घर में
नहीं तो बस अँधेरे से अँधेरा जोड़ना ठहरा
786
जो कहते हैं— ‘हमसे लड़ाई हुई है’
किसीकी लगायी-बुझायी हुई है
787
जो कहा– ‘मिलेंगे फिर कब’ तो हँसा कि राम जाने
ये जुनून मेरे सर में कभी है, कभी नहीं है
788
जो कहा ये मैंने कि हमसफ़र ! कभी मेरी ओर भी हो नज़र
तो हँसा कि प्यार के नाम पर, यही ग़म हैं तेरे हिसाब में
789
जो ख़याल में भी न आ सके, उसे प्यार भी कोई क्या करे !
तू ख़ुदा भले ही रहा करे, मुझे नाख़ुदा पे ग़रूर है
790
जो खिले थे प्यार के रंग सौ कभी पँखुरियों में गुलाब की
उन्हें यों हवा ने उड़ा दिया कि पता भी आज न चल सके
791
जो गयी भी हो मुझे छोड़कर, छिपी होगी वह किसी मोड़ पर
उसे ढूँढ़ ही लूँगा मैं दौड़कर, क्यों अभी से, दिल ! तू हताश है
792
जो गये हैं आज यों छोड़कर, खड़े होंगे वे किसी मोड़ पर
कई बार पहले भी दौड़कर, थे ढलान पर से उतर गये
793
जो गले में डोर-सी थी बँधी, उसे तोड़ तो न सका कोई
कई छटपटाके चले गये, कई मुस्कुराके चले गये
794
जो, ‘गुलाब’ ! आपने गीत गाये, उनमें धड़कन तो है प्यार की ही
पर वे मजबूरियाँ हैं दिलों की, गुनगुनाने की बातें नहीं हैं
795
जो घायल ख़ुद हो औरों को रुलाये
शमा जलती है परवाने के पहले
796
जो चढ़ा तो फिर न उतर सका, मेरी उम्र भर का ये था नशा
जिसे तू नज़र से पिला गया, उसे क्या मिलेगा शराब में !
797
जो चाहे समझ लीजिए, मरज़ी है आपकी
गाना है बेबसी मेरी, कुछ और नहीं है
798
जो छलक रहा है प्याला तेरे हाथ से तो क्या है !
कभी मुँह से तो लगा ले इसे फोड़ने के पहले
799
जो जीवन में दुख की घटा बन गयी है
वही काव्य में प्रेरणा बन गयी है
800
जो डूबा उसे डूब जाने दिया
‘यही है यहाँ की प्रथा’, कह गये
801
जो तू सुरों में सजा रहा है हमारे सीने की धड़कनों को
तो हम भी तेरे ही दिल का सरगम छिपाके ग़ज़लों में रख रहे हैं
802
जो तूफ़ान में नाव बढ़ती रही है
कोई डाँड़ इसकी चलाता तो होगा !
803
जो देखते नहीं हैं पलटकर हमारी ओर
क्या-क्या न उनकी एक अदा से हुए हैं हम !
804
जो देखना हो देखिए इस दिल में झुकके आप
क्या कीजिएगा चाँद-सितारों को देखकर !
805
जो देखने से ही पड़ता है आईने में बाल
लो, देखने से भी बाज़ आये आज, टूट न जाय
806
जो देखिए तो वही-वह दिखायी देता है
जो सोचिए तो उलझता है जाल, है कि नहीं !
807
जो न आये लौटके फिर कभी, मुझे उससे मिलने की आस है
जो सदा को छोड़ गयी मुझे, उसी हमक़दम की तलाश है
808
जो न मिलते यहाँ हँसती हुई आँखों से गुलाब
कोई इस बाग़ में रोने भी न आया होता
809
जो नज़र प्यार की कह गयी है, मुँह पे लाने की बातें नहीं हैं
हम सुना तो रहे बेसुधी में, वे सुनाने की बातें नहीं हैं
810
जो परायी जलन से न तड़पे
आदमी वह कोई आदमी है !
811
जो पीने में ज़्यादा या कम देखते है
वे अपने ही मन का भरम देखते हैं
812
जो पूछ भी लेते तुम उड़ती हुई आँखों से
क्यों रूठके यों कोई दुनिया से गया होता !
813
जो पूछा भी उससे कि फिर कब मिलोगे
तो बस मुस्कुराकर चला जा रहा है
814
जो प्यार भी मिल जाये, यह बात कहाँ होगी !
हम आपकी नज़रों में मेहमान ही अच्छे हैं
815
जो भी कहिए, यही लगता है कुछ भी कह न सके
और चुप भी न रहा जाय, और क्या कहिए !
816
जो भी जितनी दूर तक आया, उसे आने दिया
भेद अपने दिल का उसने कब मगर पाने दिया !
817
जो भी वादे कराये गये
सब हँसी में उड़ाये गये
818
जो यहाँ पे आये थे सैर को, नहीं फिर वे लौटके घर गये
जो कहीं न ठहरे थे उम्र भर, वे यहाँ पहुँचके ठहर गये
819
जो ये रट लगाते थे हर घड़ी, कि क़सम न टूटेगी प्यार की
वही सामने से अभी-अभी, बड़ी बेरुख़ी से गुज़र गये
820
जो रंग एक था आता तो एक जाता था
किसीके दूर बताने से कोई दूर न था
821
जो रोते हैं ऐसी ही बातों में आप
कहाँ मुँह छिपायेंगे रातों में आप
822
जो लिखा है, सच ही होगा, तुझे ग़म नहीं है कोई
ये बता कि कह रहा क्या तेरे ख़त का हाशिया है
823
जो सच कहें तो ये कुल सल्तनत हमारी है
पड़े हैं पाँव में तेरे, ये ख़ाकसारी है
824
जो सर फोड़ना ही रहा पत्थरों से
ये फूलों के दिल क्यों गढ़े जा रहे हैं !
825
जो हमें कहते थे हरदम— ‘जान से तुम कम नहीं‘
जान जाने का हमारी, आज उनको ग़म नहीं
826
जो हलकी-सी दिल में कसक प्यार की थी
बनी ज़िंदगी भर का, ग़म धीरे-धीरे
827
जो ह्रदय को प्यार का दुख मिला, तो अधर को गीत की बाँसुरी
उसी बाँसुरी के सुरों पे हम, कोई धुन सजाके चले गये
828
ज़ोर चलता नहीं क़िस्मत की हवाओं पे, ‘गुलाब’ !
जैसे चलती नहीं तिनके की लहर के आगे
829
जोहना क्या मुँह बहारों का, गुलाब !
तुझको आना है तो बेमौसम के आ
830
ज्यों ही लगी थी फैलने घर में दिये की जोत
त्यों ही हवा का रुख़ भी बहुत बेरहम हुआ
831
ज्योति किसकी है दूर अंबर में !
क्षुद्र अणु में समा रहा है कोई
832
झकोरे खाने लगी नाव आके तीर के पास
बचा सको तो बचा लो, बहुत उदास हूँ मैं
833
झकोरे तेज़ हवाओं के हैं सर-आँखों पर
गले गुलाब के नाज़ुक-सी एक बेल तो हो
834
झलक भी प्यार की कुछ उसमें मिल गयी होती
हमारी जाँच जो दिल की नज़र से की होती
835
झलक रही है उन आँखों में शोख़ियाँ कैसी !
हमारे दिल में तड़पती हैं बिजलियाँ कैसी !
836
झलकता और ही उनपर है आज प्यार का रंग
किसीने दूध में केसर मिलाके छोड़ दिया
837
झाँझर नैया, डाँड़ें टूटीं, नागिन लहरें, तेज़ हवा
टिक न सकेगा पाल पुराना, मेरे साथी, मेरे मीत !
838
झुकके आँखों में किसीकी ये पूछते हैं गुलाब —
‘आपके दिल में पहुँचने की राह है कि नहीं !’
839
झूठा है प्यार, इनमें जो रंगत नहीं आयी
कोई हमारी आँखों से आँखें मिलाये तो !
840
झेलने को सब झेल ही लेंगे, दिल के लिये है एक-सी बात
चाल ये पर कैसी है तुम्हारी, जीत के भी हम हो गये मात !